देवी काली हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे शक्तिशाली देवियों में से एक हैं। देवी काली को अक्सर काली त्वचा, लाल आँखों, खोपड़ियों की माला और रक्त-लाल जीभ के साथ दिखाया जाता है, और सदियों से यह भक्तों को मोहित और भयभीत करती रही है। लेकिन उनके भयानक रूप के पीछे एक गहरी प्रतीकात्मक कहानी छिपी है- जो दैवीय क्रोध, विनाश और अराजकता व ब्रह्मांडीय संतुलन के बीच की महीन रेखा की बात करती है।
देवी काली का जन्म और उनके क्रोध की कहानी
प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, काली का जन्म राक्षस रक्तबीज के विरुद्ध एक भीषण युद्ध के दौरान देवी दुर्गा के माथे से हुआ था। इस असुर को एक भयानक वरदान प्राप्त था: उसके रक्त की प्रत्येक बूंद जो जमीन पर गिरती, उससे उसके समान ही शक्तिशाली एक और राक्षस उत्पन्न होता।
जैसे-जैसे दुर्गा और उनके योद्धा उसे हराने के लिए संघर्ष करते, उसका बहा हुआ रक्त उसे बढ़ाता जाता, जिससे वह लगभग अजेय हो जाता।
इस अंतहीन चक्र को रोकने के लिए, काली अपने सबसे प्रचंड रूप में प्रकट हुईं। बिखरे बालों, बेलगाम क्रोध और न्याय की प्यास के साथ, उन्होंने युद्धभूमि में उत्पात मचाया। रक्तबीज पर प्रहार करते हुए, उन्होंने उसका रक्त धरती पर गिरने से पहले ही पी लिया, ताकि कोई नया राक्षस पैदा न हो। ऐसा करके, काली ने युद्ध का रुख मोड़ दिया और स्वर्ग को विनाश से बचा लिया।
हालांकि, उनका क्रोध शांत नहीं हुआ। रक्त और शक्ति के नशे में चूर, काली ने अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को नष्ट करना शुरू कर दिया, यहां तक कि वे भी जिनकी वह रक्षा करने आई थीं। उनके बेकाबू क्रोध ने ब्रह्मांड के ताने-बाने को तहस-नहस कर दिया। उन्हें शांत न कर पाने वाले देवता मदद के लिए भगवान शिव की ओर मुड़े।
देवी काली की जीभ हमेशा बाहर क्यों रहती है?
जब काली माता का क्रोध अपने चरम पर था और वह सब कुछ नष्ट करती जा रही थीं, तब भगवान शिव उन्हें रोकने के लिए उनके सामने लेट गए। जैसे ही काली माता ने अनजाने में अपने ही पति शिव के ऊपर पैर रख दिया, उन्हें तुरंत होश आया कि वो क्या कर रही हैं।
पति पर पैर रखने की शर्म और अपने विनाशकारी रूप का एहसास होते ही काली माता ने झटके में अपनी जीभ बाहर निकाल ली। ये भाव झिझक, पछतावे और आत्म-संयम का प्रतीक बन गया। आज भी माता काली की मूर्तियों और चित्रों में बाहर निकली जीभ इसी क्षण की याद दिलाती है।
काली की उभरी हुई जीभ एक भाव-भंगिमा से कहीं बढ़कर है; यह उस क्षण का प्रतीक है जब अनियंत्रित क्रोध जागरूकता में बदल जाता है। यह हमें याद दिलाता है कि सबसे प्रचंड शक्ति को भी ज्ञान से संयमित किया जाना चाहिए। उनकी छवि केवल विनाश की ही नहीं, बल्कि अंततः संतुलन की ओर लौटने की भी है।
सदियों से, काली स्त्रीत्व की शक्ति, अहंकार के नाश और काल की शक्ति का प्रतीक बन गई हैं। उनकी फैली हुई जीभ हमें बताती है कि देवता भी गलतियां कर सकते हैं, लेकिन स्वीकारोक्ति और नियंत्रण ही शक्ति के सच्चे रूप हैं।