दुनिया में अगर कोई इंसान कोई गलती या अपराध करता है तो उसे कानून के हिसाब से सजा दी जाती है। आरोपी को अदालत में पेश किया जाता है और फिर जज सबूतों के आधार पर सजा सुनाते हैं।हालांकि जब कोई आरोपी गलत तरीके से या अपने पैसों के दम पर बच जाता है तो अकसर यह सुनने को मिलता है कि इसे सजा अब भगवान देंगे, क्योंकि भगवान मनुष्य के हर कर्म का हिसाब रखते है।
भगवान ने लोगों को बनाया है और भगवान ही उनका अंत करते है, मगर छत्तीसगढ़ में एक स्थान ऐसा भी है जहां गलती करने के लिए मनुष्य तो क्या भगवान को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है। जी हां यह बात सुनने में आपको अजीब लग सकती है लेकिन यह सच है।
देवी देवताओं को मिलती है सजा
छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के वनाचंल इलाके में एक ऐसी परंपरा है जिसमें देवी देवाताओं को गलती करने पर सजा दी जाती है। ये सजा न्यायाधीश कहे जाने वाले देवताओं के मुखिया देते है, मतलब यहां पर देवी देवताओं को न्यायालय की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।
सदियों पुरानी है परंपरा
कहा जाता है कि ये परंपरा सदियों पुरानी है। इस दैवीय न्यायालय में लोगों की आस्था आज भी उतनी ही अटूट है, जितनी सदियों पहले थी। इसके लिए छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के कुर्सीघाट बोराई में हर साल भादो माह के खास तिथि पर भंगाराव माई का जात्रा होता है।
इस जात्रा में बस्तर, उड़ीसा और सिहावा क्षेत्र के देवी-देवता एकत्रित होते हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस अनोखी परंपरा के गवाह बनते हैं। जानकारी के मुताबिक भंगाराव माई की उपस्थिति में जात्रा में पहुंचे सभी देवी-देवताओं की एक-एक कर परीक्षा ली जाती है। इस दौरान जो देवी देवता इस परीक्षा में फेल होते है उन्हें सजा मिलती है।
कौन देता है सजा?
धमतरी जिले में सदियों पुराना भंगाराव माई का दरबार है जिन्हें देवी देवताओं का मुखिया कहा जाता है। भंगाराव माई को एक तरह की स्थानीय दैवीय शक्ति मानी जाती हैं। इसलिए भंगाराव माई न्यायाधिश के रूप में देवी देवताओं को सजा देते हैं।
क्या है मान्यता?
यहां ऐसा माना जाता है कि भंगाराव माई के क्षेत्र में कोई भी देवी देवता उनकी अनुमति के बिना कार्य नहीं करते हैं। इस दैविय न्यायालय में महिलाओं का प्रवेश भी निषेध है। मान्यता है कि जो लोग देवी देवताओं की उपासना करते है और अगर उन देवी-देवताओं ने अपना कर्तव्य नहीं निभाया तो ग्रामीणों की शिकायत पर उन्हें कटघरे में खड़ा किया जाता है, जिन्हें भंगाराव माई न्यायधिश के रूप मे सजा देते हैं।
देवी-देवताओं की होती है सुनवाई
दरअसल गांव में होने वाले किसी भी प्रकार के कष्ट, परेशानी, आपदा का दोषी देवी देवताओं को माना जाता है। अगर देवी देवता गांव की परेशानी दूर नहीं करते हैं तो वो दोषी हैं। इस दौरान देवी-देवताओं को प्रतीक स्वरूप कठघरे में खड़ा किया जाता है।
देवी-देवताओं पर लगे आरोपों की बाकायदा सुनवाई होती है। सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल और ग्राम के प्रमुख दलीलें पेश करते हैं। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद अगर आरोप सिद्ध होते हैं, तो देवी-देवताओं को सजा सुनाई जाती है।
सजा के तौर पर क्या होता है?
सजा के तौर पर देवी देवताओं की सामग्रियों को गड्ढे में डाल दिया जाता है, जिसे ग्रामीण दैवीय कारागार कहते हैं। ग्रामीण मानते हैं कि इस प्रक्रिया से न्याय और आस्था दोनों सुरक्षित रहते हैं।