Operation Mahadev : ऑपरेशन महादेव, भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा 28 जुलाई, 2025 को जम्मू और कश्मीर के श्रीनगर के पास हरवान-लिडवास वन क्षेत्र में शुरू किया गया एक आतंकवाद-रोधी अभियान है। यह अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के जवाब में चलाया गया था, जिसमें 26 नागरिक- जिनमें ज्यादातर हिंदू पर्यटक थे का नरसंहार हुआ था।
अटूट संकल्प और सावधानीपूर्वक योजना का एक महत्वपूर्ण प्रदर्शन करते हुए, भारतीय सुरक्षा बलों ने हाल ही में ‘ऑपरेशन महादेव’ के एक महत्वपूर्ण चरण को खत्म किया है। यह एक समर्पित आतंकवाद-रोधी पहल है जिसके तहत लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के तीन टॉप आतंकवादियों को ढेर किया गया, जिनमें 22 अप्रैल के भयावह पहलगाम हमले का कथित मास्टरमाइंड भी शामिल था। यह ऑपरेशन, विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों की बढ़ी हुई क्षमताओं और कश्मीर घाटी में आतंकवाद के खिलाफ भारत की चल रही लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।
क्या है ऑपरेशन महादेव का बैकग्राउंड?
ऑपरेशन महादेव की शुरुआत 22 अप्रैल, 2025 को सुरम्य पर्यटन स्थल पहलगाम पर हुए क्रूर आतंकवादी हमले से हुई थी। इस हमले में 26 निर्दोष नागरिकों, जिनमें मुख्यतः पर्यटक थे, की जान चली गई थी और इसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था और पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद की प्रकृति को उजागर किया था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, जिन्होंने इस घटना के कुछ घंटों बाद व्यक्तिगत रूप से श्रीनगर का दौरा किया था, ने 23 अप्रैल को एक हाई लेबल सिक्योरिटी बैठक बुलाई थी।
सेना, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस के टॉप अधिकारियों की इस बैठक में एक स्पष्ट आदेश दिया गया कि पहलगाम हमले के अपराधियों को भारत से भागने नहीं दिया जाएगा और उन्हें हर कीमत पर न्याय के कटघरे में लाया जाएगा। इस दृढ़ संकल्प ने ऑपरेशन महादेव की नींव रखी।
पहचाने गए मास्टरमाइंड: सुलेमान, जिबरान और हमजा अफगानी
ऑपरेशन महादेव का मुख्य उद्देश्य पहलगाम में हुए अत्याचार के जिम्मेदार लोगों की लगातार तलाश करना था। ह्यूमन इंटेलिजेंस जानकारी, तकनीकी निगरानी और गहन जांच के जरिए, सुरक्षा बलों ने लश्कर-ए-तैयबा के तीन प्रमुख आतंकवादियों की पहचान की:
सुलेमान उर्फ़ आसिफ (जिसे हाशिम मूसा या फैजल जट्ट के नाम से भी जाना जाता है): उसे कथित मास्टरमाइंड और लश्कर-ए-तैयबा का एक प्रमुख 'ए' कैटेगरी का कमांडर बताया गया। उसकी भूमिका सिर्फ पहलगाम तक ही सीमित नहीं थी बल्कि वह अक्टूबर 2024 में हुए सोनमर्ग सुरंग हमले और गगनगीर में हुए एक अन्य हमले से भी जुड़ा था।
जिबरान: 'ए' कैटेगरी का लश्कर-ए-तैयबा आतंकवादी, जिब्रान भी पहलगाम हमले और अन्य नागरिक हत्याओं में सीधे तौर पर शामिल था।
हमजा अफगानी (जिसे अफगान भी कहा जाता है): एक अन्य 'ए' कैटेगरी का लश्कर-ए-तैयबा आतंकवादी, हमजा अफगानी पहलगाम की बैसरन घाटी में हुई हत्याओं में डायरेक्ट शामिल था।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में अपने संबोधन में इन तीनों की पुष्टि की, जहां उन्होंने पहलगाम हमले से जुड़े सबूतों को उजागर किया।
ऑपरेशन महादेव को अंजाम कैसे दिया गया?
ऑपरेशन महादेव एक सावधानीपूर्वक नियोजित और एग्जीक्यूटेड मिशन था।
ह्यूमन इंटेलिजेंस और स्थानीय समर्थन: शुरुआती सफलता महत्वपूर्ण ह्यूमन इंटेलिजेंस से मिली। दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान के चुनौतीपूर्ण इलाकों में रहने वाले स्थानीय समुदायों और खानाबदोशों के सूत्रों ने संदिग्ध गतिविधियों और संभावित ठिकानों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। यह जमीनी स्तर की खुफिया जानकारी खोज क्षेत्र को सीमित करने में अमूल्य साबित हुई। ओवर ग्राउंड वर्कर्स (OGW) से पूछताछ से भी महत्वपूर्ण सुराग मिले, जिससे सीधे तौर पर आतंकवादियों की पहचान हो सकी। मारे गए आतंकवादियों की पहचान करने में चार व्यक्तियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिनमें से दो को पहले राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने आतंकवादियों को आश्रय और भोजन उपलब्ध कराने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
तकनीकी निगरानी- सैटेलाइट फोन की चूक: आतंकवादियों पर नजर रखने में एक अहम कारक थुराया सैटेलाइट फोन पर उनकी निर्भरता थी। ये डिवाइस, जिनका इस्तेमाल अक्सर बिना सेलुलर नेटवर्क वाले इलाकों में किया जाता है, आतंकवादियों को सीमा पार अपने आकाओं से बात करने में मदद करते थे। पहलगाम हमले के तुरंत बाद हमलावरों द्वारा इस्तेमाल किया गया हुआवेई सैटेलाइट फोन बंद हो गया था, लेकिन मुठभेड़ से दो दिन पहले यह कुछ समय के लिए फिर से एक्टिव हो गया था। इस "चूक" ने सुरक्षा एजेंसियों को सटीक स्थान की जानकारी दे दी। दाचीगाम के घने जंगलों और गुफाओं में भी, जहां लगभग 30 किलोमीटर तक कोई मानव बस्ती नहीं है, इन रेडियो वेव का पता लगाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक निगरानी उपकरण तैनात किए गए थे। महादेव पीक के पास 13,000 फीट की ऊंचाई पर भी, हीट सिग्नेचर ड्रोन ने उनके सटीक स्थानों का पता लगाने में मदद की।
ज्वाइंट ऑपरेशन और तालमेल: ऑपरेशन महादेव की सफलता भारतीय सेना के स्पेशल पैरा कमांडो, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और जम्मू-कश्मीर पुलिस के बीच सहयोग से हुआ। भारतीय सेना की श्रीनगर स्थित चिनार कोर ने इस जमीनी अभियान के संचालन और एग्जीक्यूशन में प्रमुख भूमिका निभाई।
अंतिम मुठभेड़: लगातार मिल रही खुफिया जानकारी और तकनीकी सूचनाओं के आधार पर, एक ज्वाइंट टीम ने सोमवार, 28 जुलाई, 2025 की सुबह, दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान के पास, लिडवास इलाके में "ऑपरेशन महादेव" शुरू किया। एक अस्थायी तंबू के नीचे आराम कर रहे आतंकवादियों को अचानक पकड़ लिया गया। लगभग तीन घंटे तक चली भीषण गोलीबारी के बाद, तीनों आतंकवादी - सुलेमान, जिबरान और हमजा अफगानी - मारे गए।