दिल्ली-एनसीआर की हवा इन दिनों जहर बन चुकी है। आसमान में फैली धुंध, आंखों में जलन और सांसों में घुलता धुआं अब सर्दियों की नई पहचान बन गया है। एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरनाक स्तर पार कर चुका है और ऐसे में घर के अंदर रहना भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं रहा। यही वजह है कि अब एयर प्यूरीफायर कोई शौक नहीं, बल्कि जरूरत बन चुके हैं। लेकिन सैकड़ों ब्रांड्स के दावों के बीच सही मशीन चुनना लोगों के लिए चुनौती बन गई है। अगर आप एयर प्यूरीफायर खरीदने का सोच रहे हैं, तो कुछ अहम बातों पर ध्यान देना जरूरी है।
सबसे पहले बात करते हैं फिल्ट्रेशन की। एक अच्छा एयर प्यूरीफायर तीन लेयर वाले फिल्टर सिस्टम से लैस होना चाहिए – प्री-फिल्टर, HEPA फिल्टर और एक्टिवेटेड कार्बन फिल्टर। प्री-फिल्टर धूल, बाल और बड़े कणों को रोकता है, HEPA फिल्टर 0.3 माइक्रॉन तक के 99.97% कणों को हटाता है, जबकि कार्बन फिल्टर जहरीली गैसों और बदबू को सोख लेता है। HEPA फिल्टर का ग्रेड भी मायने रखता है। दिल्ली जैसी प्रदूषित हवा के लिए True HEPA H13 या H14 फिल्टर ही चुनें। मार्केट में मिलने वाले HEPA-type या HEPA-like मॉडल असली HEPA नहीं होते, ये सिर्फ मार्केटिंग के नाम पर बेचे जाते हैं।
अब बात करते हैं परफॉर्मेंस की। किसी भी एयर प्यूरीफायर की असली ताकत उसके CADR यानी Clean Air Delivery Rate से मापी जाती है। छोटा कमरा (150–200 वर्ग फुट) हो तो CADR कम से कम 250 m³/h और बड़े हॉल के लिए 400 m³/h से ऊपर होना चाहिए। इसके साथ ACH (Air Changes per Hour) भी देखें, जो बताता है कि एक घंटे में कमरे की हवा कितनी बार साफ होती है। सामान्य स्थिति में 4-5 ACH और एलर्जी या अस्थमा के मरीजों के लिए 6-8 ACH बेहतर मानी जाती है।
एक और महत्वपूर्ण पहलू है मेंटेनेंस। दिल्ली जैसी हवा में HEPA फिल्टर जल्दी चोक हो जाता है, इसलिए हर 3-6 महीने में फिल्टर बदलना पड़ सकता है। इसलिए खरीदने से पहले यह जरूर देख लें कि रिप्लेसमेंट फिल्टर कितनी आसानी से और कितनी कीमत में उपलब्ध है। इसके साथ ही बिजली की खपत पर भी ध्यान दें, क्योंकि एयर प्यूरीफायर अक्सर 24 घंटे चलते हैं। एनर्जी-एफिशिएंट मॉडल ही लें ताकि बिजली का बिल ज्यादा न बढ़े।
अगर आप टेक्नोलॉजी पसंद करते हैं तो स्मार्ट फीचर्स वाले मॉडल भी आजकल लोकप्रिय हैं। इनमें रियल-टाइम AQI डिस्प्ले, स्लीप मोड, टाइमर, Wi-Fi कनेक्टिविटी और मोबाइल ऐप कंट्रोल जैसे फीचर्स मिलते हैं, जिससे हवा की गुणवत्ता पर नज़र रखना आसान हो जाता है। हालांकि ये फीचर्स क्वालिटी पर असर नहीं डालते, लेकिन उपयोग अनुभव को ज़रूर बेहतर बनाते हैं।
सबसे अहम बात – ऐसे मॉडल से हमेशा बचें जो ओजोन जनरेट करते हों। कुछ सस्ते आयोनाइज़र या ओजोनेटर हवा को शुद्ध करने के नाम पर ओजोन गैस छोड़ते हैं, जो फेफड़ों के लिए बेहद हानिकारक है। इसलिए हमेशा वही मॉडल खरीदें जिस पर ‘Ozone-Free’ लिखा हो और जो HEPA + कार्बन फिल्ट्रेशन पर आधारित हो।
हर साल नवंबर-दिसंबर में दिल्ली की हवा WHO मानकों से 20 गुना तक खराब हो जाती है। ऐसे में एयर प्यूरीफायर लगाना सिर्फ सुविधा नहीं बल्कि सेहत की सुरक्षा है। मगर ध्यान रहे – सही मॉडल और सही उपयोग ही आपके घर की हवा को वाकई सांस लेने लायक बना सकता है।