शेयर बाजार में क्या होता है प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट? बस ये पढ़ लीजिए सब जान जाएंगे

इन दोनों बाजारों के काम करने के तरीके और उनके बीच के अंतर को समझना काफी जरूरी है क्योंकि इसके बाद ही आप निवेश के लिए सही निर्णय ले सकेंगे। चलिए आसान भाषा में जानते हैं इन दोनों मार्केट के बारे में.

शेयर बाजार में क्या होता है प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट? बस ये पढ़ लीजिए सब जान जाएंगे

Primary vs Secondary Market (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Primary vs Secondary Market: शेयर बाजार, कंपनियों को पैसा जुटाने और लोगों को उन कंपनियों में निवेश करने का एक जरिया प्रदान करने में अहम भूमिका निभाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि शेयर बाजार दो हिस्सों में बंटा है। पहले हिस्से को प्राइमरी मार्केट (Primary Market) कहते हैं और दूसरे हिस्से को सेकेंडरी मार्केट (Secondary Market) कहा जाता है।

 

इन दोनों बाजारों के काम करने के तरीके और उनके बीच के अंतर को समझना काफी जरूरी है क्योंकि इसके बाद ही आप निवेश के लिए सही निर्णय ले सकेंगे। चलिए आसान भाषा में जानते हैं इन दोनों मार्केट के बारे में।

 

क्या होता है प्राइमरी मार्केट?

 

प्राइमरी मार्केट वह जगह है जहां नए शेयरों का जन्म होता है। जब कोई कंपनी पहली बार पब्लिक से पैसे जुटाना चाहती है, तो वह अपने शेयर प्राइमरी मार्केट के माध्यम से बेचती है। इस प्रक्रिया को इनिशियल पब्लिक ऑफर (IPO) कहा जाता है। प्राइमरी मार्केट को ही आईपीओ मार्केट कहा जाता है।

 

ध्यान दें कि प्राइमरी मार्केट में सिर्फ स्टॉक ही नहीं बल्की जब सरकारों या कंपनियों को पैसे उधार लेने की जरूरत होती है, तो बॉन्ड भी प्राइमरी मार्केट में बेचे जाते हैं।

 

प्राइमरी मार्केट में कंपनी को निवेशकों से सीधा पैसा मिलता है। इसमें शेयर पहली बार जारी किए जाते हैं। इसके अलावा कंपनी इन पैसे का इस्तेमाल अपने कारोबार को बढ़ाने, कर्ज चुकाने, इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण या अन्य योजनाओं के लिए करती है।

 

उदाहरण से समझिए: अगर कोई व्यक्ति बेकरी और दुकानें खोलना चाहता है और उसे पैसे की जरूरत है, तो वह पब्लिक होने का फैसला कर सकता है। प्राइमरी मार्केट में, वह निवेशकों को शेयर बेचकर सीधे पैसा जुटा सकता है और अपने बिजनेस को बढ़ा सकता है।

क्या होता है सेकेंडरी मार्केट?

 

कंपनी के शेयर प्राइमरी मार्केट में बिकने के बाद गायब नहीं होते। जिन निवेशकों ने ये शेयर खरीदे थे, वे इन्हें बेचना या और शेयर खरीदना चाह सकते हैं। यहीं पर सेकेंडरी मार्केट की भूमिका आती है। सेकेंडरी मार्केट को ही शेयर बाजार या स्टॉक मार्केट कहा जाता है।

 

सेकेंडरी मार्केट में निवेशक आपस में ट्रेड करते हैं। कंपनी को इन ट्रेडिंग से कोई पैसा नहीं मिलता। बाजार चीजों को गतिशील रखता है और निवेशकों को अपने निवेश में आने या उससे बाहर निकलने का मौका देता है।

 

बेकरी वाले उदाहरण से ही समझिए: मान लीजिए कि जब बेकरी पहली बार पब्लिक हुई थी, तब आपने शेयर खरीदा था। कुछ समय बाद, आप अपना शेयर किसी और को बेचने का फैसला कर सकते हैं तो आप इसे शेयर बाजार यानी सेकेंडरी मार्केट मेंही बेचेंगे। इससे बेकरी यानी कंपनी को कोई पैसा नहीं मिलता- यह ट्रांजेक्शन आपके और खरीदार के बीच ही होता है।

 

सेकेंडरी मार्केट का सबसे लोकप्रिय उदाहरण बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) या नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) है।

प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट में मुख्य अंतर?

 

हालांकि दोनों बाजार फाइनेंशियल सिस्टम का ही हिस्सा है और शेयरों और बॉन्ड जैसी सिक्योरिटी से संबंधित हैं, फिर भी उनकी भूमिकाएं बहुत अलग हैं।

 

प्राइमरी मार्केट में सिक्योरिटीज पहली बार बनाई और बेची जाती है। यह पैसा सिक्योरिटी जारी करने वाली कंपनी या सरकार के पास सीधा जाता है। निवेशकों को शेयर या बॉन्ड का ऑरिजनल वर्जन मिलता है। वहीं सेकेंडरी मार्केट में सिक्योरिटीज की ट्रेडिंग निवेशकों के बीच होती है। कंपनी इस लेन-देन में भाग नहीं लेती। कीमतें आपूर्ति और मांग के आधार पर बदलती हैं, कंपनी के निर्णय के आधार पर नहीं।

इन मार्केट्स का क्यों है महत्व?

 

फाइनेंशियल सिस्टम को हेल्थी रखने के लिए दोनों बाजार महत्वपूर्ण हैं। प्राइमरी मार्केट कंपनियों और सरकारों को पैसे जुटाने में मदद करता है। इसके बिना, बिजनेस का ग्रोथ या पब्लिक प्रोजेक्ट का पूरा होना मुश्किल होगा। यह कई कंपनियों के लिए वित्तीय यात्रा की शुरुआत है।

 

सेकेंडरी मार्केट निवेशकों को लचीला रहने में मदद करता है। अगर किसी को कैश की जरूरत है, तो वे अपने शेयर बेच सकते हैं। अगर किसी को लगता है कि कोई कंपनी बढ़ रही है, तो वे किसी अन्य निवेशक से शेयर खरीद सकते हैं। खरीदने-बेचने की यह आजादी बाजार को जीवित बनाए रखती है और निवेशकों को यह विश्वास दिलाती है कि वे जब चाहें तब बाहर निकल सकते हैं।

 

इसके अलावा, सेकेंडरी मार्केट में कीमतें किसी कंपनी के भविष्य के बारे में जनता की राय को दर्शाती हैं। अगर बहुत से लोग किसी कंपनी के शेयर खरीदना चाहते हैं, तो कीमत बढ़ जाती है। अगर बहुत से लोग बेचना चाहते हैं, तो कीमत गिर जाती है। इस प्रकार, यह बिजनेस के प्रदर्शन के लिए एक वोटिंग सिस्टम की तरह काम करता है।