Char Dham Yatra: हाल ही में The Headlines हिंदी की सहयोगी हिमांशी राजपूत, बद्रीनाथ की यात्रा पर गईं थी। वहां उन्होंने कुछ ऐसा महसूस किया कि उनका दिल उदास हो गया। इस अनोखे एहसास को उन्होंने अपने शब्दों में बंया किया है जिसे आपको भी पढ़ना चाहिए ताकी अगले बार जब आप केदारनाथ-बद्रीनाथ यात्रा पर जाएं तो आपको यह मालूम हो।
लेखिका हिमांशी राजपूत की कलम से…
कभी जिन वादियों में जाकर, उन रास्तों से गुजरकर, आनंद मिलता था, आज उन्हीं रास्तों पर दस्तक देने पर दिल पसीज जाता है। पहले जिन रास्तों पर ना के बराबर लोग चलते थे, आज वहीं रास्ते भीड़ और शोर से भर गए हैं। जब भी हम किसी तीर्थ यात्रा पर निकलते हैं, तो उम्मीद होती है कि वहीं पहले वाली दिव्यता, वास्तविकता और नदियों के प्रति प्रेम मिलेगा।
लेकिन जब इस बार मैं बद्रीनाथ पहुँची, तो सब कुछ बदल चुका था... वो नदियां और झरने अब सूख गए थे, जो कभी पानी से लबालब भरे होते थे। अब उन रास्तों पर अगर कुछ था, तो वो थे उनके विलुप्त हुए अस्तित्व के निशान। जिन्हें देखकर मन उदासी से भर गया, क्योंकि अब उन झरनों की डरा देने वाली आवाज़ सुनाई नहीं देती। सुनाई देता है तो उन रास्तों पर चल रही गाड़ियों की पी-पी-पी। उन वादियों में सुकून तो मानों खत्म ही हो गया, क्योंकि अब वहाँ भीड़, गंदगी और शोर-शराबा हावी था।
अलकनंदा, जिसकी लहरों में उफान था, अब जैसे थकी-थकी और कमजोर सी बह रही है। ये सब देखकर मेरा दिल टूट गया… क्योंकि यही वो जगह थी, जहां मैंने अपने जीवन का सबसे पवित्र अनुभव महसूस किया था। यही वे रास्ते थे, जिन पर चलकर मुझे केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे धामों का साक्षात दर्शन मिला था। मैं यात्रा पर गई थी दिल को खुशी देने, लेकिन मन को दुख दे बैठी।
मुझे याद आने लगे वो पल... जब इस यात्रा ने मेरे जीवन में एक नया सवेरा किया था। मुझे भक्ति, परमात्मा के प्रति प्रेम का पहली बार एहसास दिलाया था। आज उन्हीं यादों को फिर से जीने की कोशिश है, ताकि आपको फर्क समझा पाऊं। आपको एक बार इन दोनों धामों को, वादियों को, नदियों को अपनी नजर से दिखा पाऊं, जिसे एक वक्त पर मैंने देखा था।
भारत में हर साल चारधाम यात्रा की शुरुआत अप्रैल–मई के दरमियान होती है। आजकल आंकड़ों में देखने को मिलता है कि करोड़ों की संख्या में भक्तजन चारधाम यात्रा पर पहुंचते हैं। वैसे तो चारधाम यात्रा आमतौर पर बुज़ुर्गों से जुड़ी मानी जाती थी, लेकिन अब इस यात्रा पर युवाओं की संख्या ज्यादा बढ़ रही है। वैसे ही मैं भी पहली बार चारधाम यात्रा पर केदारनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन करने पहुंची थी।
धार्मिक स्थानों में श्रद्धा
मेरे पिता अक्सर केदारनाथ धाम की महिमा, उससे जुड़ी मान्यता, इतिहास और वादियों में बसे इस खूबसूरत धाम की बातें किया करते हैं। इसके साथ ही मेरे पिता ऐसे ही कई धार्मिक स्थानों की यात्रा करने में श्रद्धा रखते हैं। अब उनकी ये श्रद्धा शायद मुझे विरासत में मिली है। मैं भी उस हर एक धार्मिक स्थान के दर्शन करना चाहती हूं, जिनका अपने आप में एक विशेष महत्त्व है। मैं अपनी आंखों से उन्हें निहारना चाहती हूं, उस स्थान की मौजूदगी, उसकी स्थिति अपनी आंखों में इस कदर उतार लेना चाहती हूं जो अनंतकाल तक मेरी स्मृति में बनी रहे।
कैसे बढ़ी केदारनाथ की लोकप्रियता?
चारधाम यात्रा में सबसे लोकप्रिय धाम महादेव का केदारनाथ धाम है, जिसकी यात्रा पर जाने के लिए आज पूरा युवा समाज उतावला रहता है। लेकिन सवाल ये है कि आखिर ये धाम लोगों के बीच इतना लोकप्रिय क्यों है? इसका श्रेय 2013 में केदारनाथ धाम पर आई जल प्रलय को जाता है, जब मंदाकिनी अपने रौद्र रूप में बह रही थी। उसके रास्ते में जो कोई भी आता, उसे वह बेदर्दी से बहा ले जाती। जिसमें कई भक्तों की जानें गईं। फिर यहीं से शुरू हुआ केदारनाथ धाम की चर्चा का सिलसिला।
7 दिसंबर 2018 — वह तारीख थी, जिसने केदारनाथ धाम की लोकप्रियता को अपनी चरम सीमा पर पहुंचा दिया। केदारनाथ धाम पर आधारित फिल्म 7 दिसंबर 2018 को 2013 में केदारनाथ में आई जल प्रलय पर आधारित फिल्म "केदारनाथ" रिलीज हुई। जिसे बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया गया। केदारनाथ, जल प्रलय के कारण पहले से चर्चा में था, लेकिन फिल्म के आने के बाद इसकी लोकप्रियता में चार चांद लग गए। हर कोई केदारनाथ धाम को जानने और वहाँ जाने की इच्छा रखने लगा।
केदारनाथ जाने का जुनून
मुझ पर भी इस फिल्म का जबरदस्त असर हुआ। पिताजी से केदारनाथ के बारे में जो सुना था, उसकी वजह से केदारनाथ जाने की इच्छा थी, लेकिन इस जल प्रलय की घटना और फिल्म ने उस इच्छा को जुनून में बदल दिया। अब केदारनाथ धाम के बारे में सिर्फ सुनना नहीं था, बल्कि खुद उस अनुभव को जीना था।
भोलेनाथ और बद्रीविशाल की कृपा
मेरे घर में सभी भोलेनाथ के भक्त हैं, और शायद भोलेनाथ को अपने भक्त पर तरस आ गया। मुझ पर भोलेनाथ और बद्रीविशाल की विशेष कृपा हुई, और आखिरकार मुझे केदारनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन करने का सौभाग्य मिला।
महादेव के पास होने का एहसास
हम केदारनाथ यात्रा के लिए निकल पड़े। केदारनाथ यात्रा के रास्ते में सबसे पहले देवप्रयाग आता है। उसे देखकर मेरे तो होश ही उड़ गए। उस संगम को देखकर ऐसा लगा मानों जैसे स्वर्ग की पहली झलक हो। किसी ने सही कहा है — मंज़िल तो खूबसूरत है, लेकिन उससे ज्यादा खूबसूरत उस मंज़िल तक पहुँचने का सफर है।
इस सफर का आनंद उठाते हुए हम आगे बढ़े और गौरीकुंड पहुँचकर हमने वो देखा, जिसने हमारे अंदर नई ऊर्जा को जन्म दे दिया। सारी शिकायतें उन बर्फ के पहाड़ों को देखकर खत्म हो गईं। जहाँ केदारनाथ धाम बसा है, वहाँ के ऊँचे-ऊँचे पर्वत साक्षात महादेव के पास होने का एहसास करा रहे थे।
कभी ना भूल पाने वाला अनुभव
गौरीकुंड से केदारनाथ धाम की पैदल यात्रा शुरू होती है। वो पैदल यात्रा इतनी भी आसान नहीं थी। उस यात्रा में मैंने आधे रास्ते में कई लोगों को वापस लौटते देखा। एक मिनट के लिए तो मैं भी अपने मन से हार गई थी, लेकिन महादेव के दर्शन के जुनून ने मुझे मैदान छोड़कर भागने नहीं दिया।
शारीरिक कष्ट तो था ही, लेकिन दृढ़ संकल्प पक्का था। आखिरकार मैंने पैदल यात्रा पूरी की, और फिर मैंने केदारनाथ मंदिर को देखा। मंदिर को देखते ही सारी थकान दूर हो गई। ऐसा लगा मानों देवप्रयाग पर भागीरथी और अलकनंदा की तरह भक्त की आत्मा परमात्मा से मिलकर एक हो गई हो। यह एक ऐसा अनुभव था जिसे मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी।
मन वहीं छूट गया
लेकिन कोई भी चीज़ इस दुनिया में स्थायी नहीं होती। दर्शन करने के बाद मुझे ना चाहते हुए भी वापस लौटना पड़ा। वहाँ से लौटते समय ऐसा लगा जैसे शरीर से कुछ निकल गया हो - वो आत्मा जो परमात्मा में जा मिली थी, अब अलग हो रही है। मैं तो दिल्ली वापस आ गई, लेकिन मन और दिल केदारनाथ और बद्रीनाथ पर छोड़ आई।