रजिस्ट्री कराने से मालिकाना हक आखिर क्यों नहीं मिलता? जानिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब कैसे मिलेगा ओनरशिप

इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे की आखिर सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला था और अब मालिकाना हक का दावा करने के लिए आपको कौन-कौन से दस्तावेजों की जरूरत पड़ेगी और आखिर रजिस्ट्री करने से काम अब क्यों नहीं चलेगा। चलिए सब डिटेल में जानते हैं।

रजिस्ट्री कराने से मालिकाना हक आखिर क्यों नहीं मिलता? जानिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब कैसे मिलेगा ओनरशिप

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Real Estate: अगर आपने नया फ्लैट या घर खरीदा है या फिर खरीदने का प्लान कर रहे हैं तो अब तक आपने यह जान लिया होगा कि उस घर या फ्लैट पर मालिकाना हक के लिए अब सिर्फ रजिस्ट्री करवाने से काम नहीं चलेगा। 

 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब आपको मालिकाना हक का दावा करने के लिए और भी कई दस्तावेज देने होंगे। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो भविष्य में आपको परेशानी हो सकती है और आपके साथ फ्रॉड भी हो सकता है। 

 

इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे की आखिर सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला था और अब मालिकाना हक का दावा करने के लिए आपको कौन-कौन से दस्तावेजों की जरूरत पड़ेगी और आखिर रजिस्ट्री करने से काम अब क्यों नहीं चलेगा। चलिए सब डिटेल में जानते हैं। 

 

क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

 

दरअसल अप्रैल 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया था जिसके मुताबिक प्रॉपर्टी खरीदने वालों के लिए प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री कर देना काफी नहीं है यानी सिर्फ रजिस्ट्री से ये साबित नहीं होता की आप इस प्रॉपर्टी के मालिक है।

 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अब प्रॉपर्टी खरीदने और बेचने की प्रक्रिया और ज्यादा लंबी सख्त और खर्चीली हो गई है। 

किस केस में सुप्रीम कोर्ट ने लिया फैसला?

सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला महनूर फातिमा इमरान बनाम स्टेट ऑफ तेलंगाना केस में लिया था। साल 1982 में हैदराबाद की एक को- ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी ने एक जमीन खरीदी थी, जिसे उन्होंने एक अनरजिस्टर्ड सेल एग्रीमेंट के जरिए खरीदा गया था।

 

बाद में साल 2006 में इसे असिस्टेंट रजिस्ट्रार ने वैलिड भी कर दिया लेकिन इसकी रजिस्ट्री कभी नहीं करवाई गई जिसके बाद उस जमीन को आगे कई लोगों को बेच दिया गया, जिनमें महनूर फातिमा और कुछ अन्य लोग भी थे। उन्होंने इस जमीन पर कब्जे का दावा करते हुए कोर्ट का रुख किया।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर जमीन की पहली खरीद अनरजिस्टर्ड सेल एग्रीमेंट के बेस पर की गई है तो उसके बाद जो भी इस जमीन को खरीदता है और रजिस्ट्री कराता है तो उसके बाद भी उसे जमीन का मालिक नहीं माना जायेगा।

 

यानी इस मामले में अगर पहली ट्रंजैशक्न लीगल नहीं थी तो बाकी सारी ट्रांजैक्शन य डील भी  लीगल नहीं मानी जाएगी. 

रजिस्ट्री से मालिकाना हक क्यों नहीं?

रजिस्ट्री का सिर्फ इतना मतलब होता है कि यह एक तरह का रिकॉर्ड है यानी किसी डील या ट्रांजैक्शन को ऑफिशियल रूप से दर्ज किया गया है वहीं ओनरशिप साबित करने के लिए आपको दूसरी जरूरी दस्तावेज और सबूत देने होंगे।

मालिकाना हक साबित करने के लिए अब कौन-कौन से दस्तावेजों की जरूरत?

मालिकाना हक यानी ओनरशिप साबित करने के लिए आपके पास किसी प्रॉपर्टी का सेल डीड और टाइटल डीड होना जरूरी है। इसके अलावा एन्कम्ब्रेंस सर्टिफिकेट, म्यूटेशन सर्टिफिकेट, प्रॉपर्टी टैक्स की रसीद, पजेशन लेटर, अलॉटमेंट लेटर, सक्सेशन सर्टिफिकेट या विल आपकी ओनरशिप साबित कर सकती है। 

 

अगर प्रॉपर्टी आपको किसी तोहफे के तौर पर दी गई है तो उसे जुड़े डॉक्युमेंट्स आपके पास होना जरूरी है।