स्टॉरलिंक के टेलीकॉम मार्केट में एंट्री से जियो और एयरटेल को कितना खतरा?

भारत सरकार के दूरसंचार विभाग (DoT) से स्टॉरलिंक को रेगुलेटरी मंजरी मिलने के बाद यह देश में अपनी सर्विस को शुरू करने के काफी करीब पहुंच चुका है।

स्टॉरलिंक के टेलीकॉम मार्केट में एंट्री से जियो और एयरटेल को कितना खतरा?

Starlink Impact on Indian Telecom Sector

Starlink Impact on Jio & Airtel:  6 जून 2025 को एलन मस्क (Elon Musk) की कंपनी स्टारलिंक (Starlink) को भारत में महत्वपूर्ण ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशन बाय सैटेलाइट (GMPCS) लाइसेंस मिला जिसके बाद भारत में स्टारलिंक के कमर्शियल संचालन का रास्ता और साफ हो गया है। 

भारत सरकार के दूरसंचार विभाग (DoT) से स्टॉरलिंक को रेगुलेटरी मंजरी मिलने के बाद यह देश में अपनी सर्विस को शुरू करने के काफी करीब पहुंच चुका है। यह लाइसेंस देश में कम्यूनिकेशन सर्विस के लिए विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कदम है। चलिए जानते हैं कि टेलीकॉम बाज़ार के लिए स्टारलिंक के एंट्री के लिए क्या मतलब है और देश के दो दिग्गज टेलीकॉम प्लेयर जियो और एयरटेल का क्या होगा।

 

क्या है स्टॉरलिंक?

एलन मस्क की अमेरिकी एयरोस्पेस कंपनी स्पेसएक्स (SpaceX) की पूर्ण स्वामित्व वाली सब्सिडियरी कंपनी स्टारलिंक सर्विसेज (Starlink Services) द्वारा संचालित स्टारलिंक (Starlink), एक सैटेलाइट इंटरनेट सैटेलाइट इंटरनेट नेटवर्क है जो सैटेलाइट के माध्यम से इंटरनेट सर्विस प्रदान करता है। 

स्टारलिंक मौजूदा वक्त में 130 देशों और क्षेत्रों में अपनी सर्विस प्रदान कर रहा है। स्पेसएक्स ने 2019 में स्टारलिंक सैटेलाइट को लॉन्च करना शुरू किया और मई 2025 तक, इसने लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में 7,600 से अधिक बड़े पैमाने पर उत्पादित छोटे सैटेलाइट शामिल कर लिए हैं। ये सैटेलाइट निर्दिष्ट ग्राउंड ट्रांसीवर के साथ कम्यूनिकेट करते हैं और सामूहिक रूप से सभी एक्टिव सैटेलाइट का 65 प्रतिशत हिस्सा हैं। स्टारलिंक की उपस्थिति भारत को व्यापक ग्राउंड इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरतों के बिना अत्याधुनिक LEO सैटेलाइट तकनीक को अपनाने में सक्षम बनाती है।

स्टॉर लिंक का पॉजिटिव प्रभाव

सैटेलाइट सर्विस देश के ग्रामीण और खासकर दूरदराज के क्षेत्रों में जहां इंटरनेट केबल या नेटवर्क पहुंचाना मुश्किल है वहां सैटेलाइट सर्विस के माध्यम से बिना किसी इंफ्रास्ट्रक्चर के इंटरनेट पहुंचाना आसान हो जाएगा। स्टॉरलिंक की ये सैटेलाइट सर्विस शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और कृषि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में मददगार साबित होगी। LEO सैटेलाइट हाई बैंडविड्थ और कम लेटेंसी प्रदान करते हैं। सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस प्राकृतिक आपदाओं के दौरान बैकअप के तौर पर भी काम करेगा जब ग्राउंड नेटवर्क विफल हो जाते हैं। 

उदाहरण के तौर पर बाढ़ की स्थिति में केबल और नेटवर्क में काफी समस्या आती है जो कि सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस में नहीं आएगी। इसके अलावा, यह कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने और तकनीकी निवेशों को आकर्षित करके दूरदराज के क्षेत्रों में MSME को और सशक्त बनाएगा।

जियो और एयरटेल ने स्टारलिंक के साथ किया पार्टनरशिप

मार्च 2025 में स्टारलिंक द्वारा GMPCS लाइसेंस प्राप्त करने के पहले ही भारती एयरटेल (Bharti Airtel) और जियो (Jio) दोनो दिग्गज टेलीकॉम कंपनियों ने स्टॉरलिंक के साथ पार्टनरशिप कर लिया है। एयरटेल ने लिखा की एयरटेल ने भारत में अपने ग्राहकों तक स्टारलिंक की हाई-स्पीड इंटरनेट सेवाएं पहुँचाने के लिए स्पेसएक्स के साथ पार्टनरशिप किया है। 

 

https://x.com/airtelnews/status/1899419022195577090

 

वहीं जियो ने भी कैपशन देते हुए लिखा की डिजिटलइंडिया के लिए जियो + स्पेसएक्स = स्टारलिंक

https://x.com/reliancejio/status/1899663756608836011

 

यह पार्टनरशिप इसलिए हुई ताकी स्टारलिंक रिटेल दुकानों और ऑनलाइन स्टोर के माध्यम से अपने सर्विस उपलब्ध करवा सकें। देशभर में एयरटेल और जियो स्टोर न केवल स्टारलिंक उपकरण को स्टॉक करेंगे बल्कि कस्टमर सर्विस, इंस्टॉलेशन और एक्टिवेशन भी करेंगे। 

जियो और एयरटेल पर कितना प्रभाव?

विश्लेषकों का मानना ​​है कि जियो और एयरटेल के साथ पार्टनरशिप उनकी मौजूदा ब्रॉडबैंड सर्विस, जैसे कि जियो फाइबर और एयरटेल एक्सस्ट्रीम फाइबर के साथ कंपीटिशन नहीं करती है। इसके बजाय, स्टारलिंक उन जगहों पर इंटरनेट की पहुंच बढ़ाकर जियो और एयरटेल के बिजनेस को बढ़ा सकती है जहां फाइबर-ऑप्टिक केबल बिछाना मुश्किल या महंगा है।

चैलेंज और चिताएं

सरकार ने स्पष्ट किया है कि डिजिटल इंडिया और भारतनेट जैसे राष्ट्रीय लक्ष्यों का समर्थन करने के लिए सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का आवंटन किया जाएगा, लेकिन भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) और दूरसंचार विभाग (DoT) अभी भी मूल्य निर्धारण को अंतिम रूप दे रहे हैं। 

 

TRAI ने हाल ही में प्राइसिंग, नियम और शर्तों पर अपनी सिफारिशें DoT को विचार के लिए सौंपी हैं। इसके अलावा, स्टारलिंक को भारत में कई परिचालन बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें डेटा लोकलाइजेशन, कड़े सुरक्षा मानदंड और इंफ्रास्ट्रक्चर को शेयर करने की जरूरतें शामिल हैं।

 

ओवरऑल प्रभाव

स्टारलिंक का प्रवेश डिजिटल इंडिया के लिए एक महत्वपूर्ण माइलस्टोन है, खासकर उन क्षेत्रों के लिए जहां अभी भी इंटरनेट सर्विस नहीं पहुंच सकी है। यदि स्टारलिंक को प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है, तो इसकी उपस्थिति भारत को इंटीग्रेटेड सैटेलाइट-स्थलीय कनेक्टिविटी में ग्लोबल लीडर के रूप में स्थापित कर सकती है।