14 July 2025
कांवड़ यात्रा 2025, भगवान शिव की गहरी आध्यात्मिक भक्ति के प्रतीक सावन माह के प्रथम दिन, 11 जुलाई को शुरू हो चुकी है। यह यात्रा 23 जुलाई को शिवरात्रि के दिन खत्म होगी।
भक्त, जिन्हें कांवड़िये कहा जाता है, बांस के डंडे (कांवड़) से बंधे घड़ों में गंगाजल लेकर शिवरात्रि पर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। उनका मानना है कि इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
तीर्थयात्री अक्सर लंबी दूरी तक पैदल चलते हैं- कुछ तो नंगे पैर भी- मंत्र जपते हैं और भगवा वस्त्र (शॉर्ट्स/पैंट और टी-शर्ट) पहने शिव भजन गाते हैं।
हरिद्वार, गौमुख और गंगोत्री। यहां से भक्त नीलकंठ महादेव मंदिर (ऋषिकेश), पुरा महादेव मंदिर (बागपत), बैद्यनाथ धाम (देवघर) और काशी विश्वनाथ (वाराणसी) गंतव्यों की ओर जाते है
सरकार और गैर-सरकारी संगठन (NGO) तीर्थयात्रियों की सहायता के लिए यात्रा मार्गों पर भोजन, पानी और चिकित्सा सहायता जैसी जरूरी सेवाएं प्रदान करते हैं।
कांवड़ियों को सलाह दी जाती है कि यात्रा के दौरान चिकित्सा सामग्री साथ रखें, व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखें और लंबी यात्रा के लिए शारीरिक रूप से तैयार रहें।
श्रद्धालुओं को चाहिए कि वो राज्य द्वारा मंजूर किए गए मार्गों का पालन करें, दूरस्थ क्षेत्रों से बचें, स्थानीय रीति-रिवाजों का सम्मान करें और कूड़ा न फैलाएं
कांवर को कभी भी जमीन पर न रखें- आराम करते समय किसी स्टैंड या शाखा का इस्तेमाल करें। नशीले पदार्थों (शराब, ड्रग्स, सिगरेट) से दूर रहें। ग्रुप में यात्रा करें, साफ कपड़े पहनें और नकारात्मक व्यवहार से बचें।