16 September 2025
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हाल ही में उत्तराखंड के देहरादून जिले के सहस्त्रधारा इलाके में बादल फटा। दुकाने, मकान और सड़कें बह गईं, सौंग नदी उफान पर आ गई और जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। इससे पहले हिमाचल प्रदेश में भी बादल फटने की घटना सामने आई थी।
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बादल फटना मतलब अचानक बहुत ज्यादा बारिश का छोटे इलाके में गिरना। कुछ ही मिनटों में घंटों जितना पानी बरसता है, जिससे बाढ़ और तबाही मचती है।
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बादल फटने की घटनाएं ज्यादातर पहाड़ों पर होती हैं। ठंडी हवाएं और ऊंचे पर्वत बादलों को रोक लेते हैं। नमी से भरे बादल फटकर पानी तेजी से नीचे बहा देते हैं।
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जब हवा में अचानक दबाव बदलता है, तो बादल स्थिर नहीं रह पाते। इस अस्थिरता से बादल टूट जाते हैं और इकट्ठा हुआ सारा पानी अचानक जमीन पर गिर जाता है।
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मानसून के दौरान हवा में नमी बहुत होती है। जब यह नमी से भरे बादल एक जगह फंस जाते हैं तो उनका जलभार बढ़ जाता है और फटने की संभावना बढ़ती है।
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गरम हवा तेजी से ऊपर उठती है और ठंडी हवा से मिलती है। यह टकराव अचानक भारी वर्षा की वजह बन सकता है, जिसे हम बादल फटना कहते हैं।
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सामान्य बारिश धीरे-धीरे बड़े क्षेत्र में होती है। क्लाउडबर्स्ट अचानक छोटे इलाके में केंद्रित होकर बरसता है, इसलिए इसका नुकसान कहीं ज्यादा होता है।
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बादल फटने के बाद अचानक फ्लैश फ्लड आती है। इससे गांव, सड़कें और खेत बह जाते हैं। कुछ ही मिनटों में इतना पानी गिरने से जान-माल का नुकसान बढ़ जाता है।
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वैज्ञानिक मानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग से नमी बढ़ रही है। इसी कारण हाल के वर्षों में बादल फटने की घटनाएं पहले से ज्यादा दर्ज की जा रही हैं।
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बादल फटने से बचना आसान नहीं, लेकिन जागरूकता जरूरी है। पहाड़ी इलाकों में मानसून के समय यात्रा सोच-समझकर करनी चाहिए और प्रशासनिक अलर्ट का पालन करना चाहिए।
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