प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि कर्म का सिद्धांत ईश्वर की सर्वोच्च न्याय व्यवस्था का हिस्सा है। उनके अनुसार जैसे इस दुनिया में किसी अपराध की सजा तुरंत नहीं मिलती, वैसे ही भगवान के न्याय में भी कर्मों का फल तुरंत नहीं मिलता। महाराज समझाते हैं कि अगर कोई आज हत्या कर दे तो उसे उसी दिन सजा नहीं मिलती। पहले मुकदमा चलता है, गवाह बनते हैं और फैसला आने में समय लगता है। इसी तरह हमारे पूर्व जन्मों के कर्म भी एक विशाल दिव्य न्याय प्रणाली के अंतर्गत आते हैं जहां किसी गवाही या सिफारिश की जरूरत नहीं होती।
महाराज बताते हैं कि भगवान के दरबार में केवल सत्य और न्याय चलता है। ब्रह्मांड जितना व्यापक है, उतना ही बड़ा हमारे कर्मों का लेखा भी है। इसी कारण सौ जन्म पुराने कर्मों का फल भी किसी समय सामने आ जाता है। उनका कहना है कि भगवान की अदालत बहुत विशाल है जहां अनगिनत जीवों का पूरा हिसाब रखा जाता है। इसलिए कई बार कर्मों का रजिस्टर देर से खुलता है।
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि हम सोचते हैं कि पाप भूल गया होगा, लेकिन भगवान कभी नहीं भूलते। वे बस सही समय का इंतजार करते हैं। जब वह दिव्य रजिस्टर खुलता है तब व्यक्ति अपने अच्छे और बुरे दोनों कर्मों का फल भोगता है। उनके अनुसार कर्म के नियम से कोई बच नहीं सकता। दुनिया में कभी अन्याय हो सकता है, लेकिन भगवान के दरबार में नहीं।
वे यह भी बताते हैं कि मनुष्य शरीर पाना बहुत दुर्लभ अवसर है। पाप करना आसान है, पर उसका परिणाम बहुत कठिन हो सकता है। इसलिए वे हमेशा अच्छे कर्म करने, सत्य पर चलने और भगवान का नाम जपने की प्रेरणा देते हैं। महाराज कहते हैं कि दिन के कुछ मिनट भी यदि अपने आराध्य को समर्पित किए जाएं तो मन शांत होता है और जीवन सही दिशा में बढ़ने लगता है। नाम जप मन को निर्मल बनाता है और कर्मों को पवित्र दिशा देता है। भगवान का स्मरण मन की शुद्धि के साथ-साथ पुराने कर्मों की गांठें खोलने में भी सहायक होता है।