आज की दौड़भाग भरी दुनिया में वर्क लाइफ बैलेंस रखना हर व्यक्ति के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है। काम का बढ़ता दबाव, स्ट्रेस, लगातार प्रतिस्पर्धा और डिजिटल डिस्टर्बेंस से जीवन असंतुलित होने लगता है। ऐसे समय में भगवद गीता के उपदेश जीवन को संतुलित और शांत बनाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
महाभारत के युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो गीता का ज्ञान दिया था, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। हर साल मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है और इस बार यह सोमवार 1 दिसंबर 2025 को पड़ रही है।
निष्काम कर्म: फल की चिंता छोड़ कर काम करें
गीता का पहला और सबसे महत्वपूर्ण सूत्र है - निष्काम कर्म। इसका मतलब है अपने कर्म पर ध्यान देना और परिणाम की चिंता न करना। नौकरी या बिजनेस में ज्यादातर तनाव उम्मीदों और नतीजों के कारण बढ़ता है। जब व्यक्ति पूरे मन से काम करे और फल की फिक्र छोड़ दे, तो स्ट्रेस अपने आप कम हो जाता है। इससे काम की क्वालिटी भी बेहतर होती है और मन शांत रहता है।
समत्व भाव: सफलता और असफलता दोनों को स्वीकारें
भागदौड़ भरे प्रोफेशनल लाइफ में कभी सफलता मिलती है, कभी असफलता। हर प्रोजेक्ट सफल हो या हर प्रयास रंग लाए - यह संभव नहीं। गीता सिखाती है कि परिणाम चाहे जैसा भी आए, मन को स्थिर रखना जरूरी है। यह भाव तनाव को कम करता है और मानसिक मजबूती बढ़ाता है।
मन पर नियंत्रण: डिजिटल युग में सबसे बड़ा हथियार
फोन, नोटिफिकेशन, चैट, मीटिंग और सोशल मीडिया लगातार मन को विचलित करते हैं। गीता कहती है - जिसने मन पर नियंत्रण पा लिया, उसके लिए जीवन आसान हो जाता है। काम के समय पूरी एकाग्रता और घर के समय परिवार को पूरा समय देना ही असली वर्क लाइफ बैलेंस है।
यही अनुशासन जीवन को सरल और संतुलित बनाता है।
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